माखन चोरी तो बहाना था असल में मथुरा दूध दही बंद कराना था, भागवत कथा के पांचवे दिन कृष्ण बाल लीला का किया वर्णन
”संतोष सोनकर की रिपोर्ट”
राजिम । शहर के रानी श्यामकुमारी देवी धर्मशाला में श्रीमद् भागवत कथा के पांचवे दिन पंडरभट्ठा मुंगेली से पहुंचे कथावाचक पंडित सूर्यभान चौबे महाराज ने कृष्ण बाल लीला का वर्णन करते हुए कहा कि बालक कृष्ण एक दिन गाड़ी में ले जा रहे दूध दही एवं घी को देखकर पूछने लगे कि इसे कहां ले जा रहे हो तब पता चला कि गोकुल का पूरा दूध मथुरा जाता है। इसे रोकने के लिए उन्होंने अपनी सखाओ को लेकर एक टीम बनाई और माखन चोरी करने का मुख्य उद्देश्य बनाया। उसे चोरी करने में उनकी टीम में जो सखा थे वह सभी पहले चुपके से जाकर पता करते थे कोई है कि नहीं। तब वह अपने पूरे दल को बुलाते और चोरियां करते थे। एक दिन ललिता सखी के यहां चोरी करने का प्लान बनाया। ललिता कपड़ा धोने के लिए जमुना चली गई, इधर सखाओं को माखन खाने का पूरा मौका मिला। सीखा में ऊपर बंधे हुए माखन को पकड़ नहीं पाए तब उन्होंने पिरामिड आकार बनाया और कृष्ण सबसे ऊपर चढ़ गए। माखन खा ही रहे थे कि अचानक ललिता आ गई। सब सखा कृष्ण को ऊपर ही छोड़कर भाग गए और कृष्ण पकड़ में आ जाते हैं। उन्हें बोरे में भरकर माता यशोदा के पास ले गए लेकिन वहां खोलकर देखने पर उनके पति दिखा। यशोदा कहती रही कि हमारे घर किस चीज की कमी है एक लाख गाय हैं। दूध दही मक्खन है वह चोरी किसलिए करेंगे। यह कौतुक अत्यंत मनभावन लगता है जो इन्हें सुनते हैं वह कृष्ण के प्रिय भक्त हो जाते हैं। पंडित चौबे ने आगे बताया कि बच्चों को मिट्टी अत्यंत प्रिय होते हैं। जहां भी मिट्टी दिखे उसे खाने लगते हैं। इत्तेफाक अब घर मिट्टी के नहीं बल्कि सीमेंटेड और टाइल्स के हो गए हैं। छोटे बच्चें को मिट्टी कहां से मिले, मजबूरन उन्हें अपने उंगली चूसना पड़ता है। क्योंकि नख में मिट्टी घुसा रहता है। जमुना के किनारे कृष्ण को बिठाकर यशोदा कपड़े धो रही थी इधर कृष्ण जहां पर बैठे थे वहीं पर से मिट्टी को उठा कर खा रहे थे। अचानक ध्यान मां का बच्चे की ओर गया तो उन्हें मिट्टी खाता हुआ देखकर तुरंत पहुंचे और मुंह से निकालने लगे। निकालते निकालते कृष्ण मुंह खोल दिया। माता ने उस अद्भुत दृश्य को देख लिया जिसे देखने के लिए बड़े-बड़े ऋषि मुनि ज्ञानी ध्यानी को सैकड़ों सैकड़ों वर्ष तपस्या करनी पड़ती है। वह मां को ऐसे ही नसीब हो गया। यशोदा देखते है कि कृष्ण के मुख में करोड़ों सूर्य चंद्रमा पृथ्वी अनगिनत ग्रह नक्षत्र पेड़ पौधे आकाश धरती इत्यादि देखकर माता विस्मित हो जाती है तब कृष्ण अपनी लीला को विराम देते हैं। और उनकी बुद्धि को पहले जैसे कर देते हैं ताकि माता को यह ना लगे कि उनका बेटा कोई साधारण बालक नहीं बल्कि साक्षात ईश्वर है। जो भगवान की सेवा करते हैं उन्हें उनकी भक्ति अनायास ही प्राप्त होती है। पंडित जी ने आगे कहा कि भोजन करने से पहले भोग लगाना अत्यंत जरूरी होता है ब्राह्मण भोग लगाकर ही भोजन करते हैं। जब भी माताएं भोजन बनाएं तो सबसे पहले अग्नि देव को प्रसाद जरूर दें। उसके बाद धरती माता और गौ माता को भोजन खिलाने से पुण्य मिलता है उन्होंने वर्तमान समय में तरह-तरह के बनाए जा रहे हैं आयातित डिस्क पर व्यंग्य कसते हुए कहा कि बच्चे के टिफिन पर नूडल्स होते हैं इसे खाने पर स्वास्थ्य पुष्ट होना कम, उनसे नुकसान ज्यादा दिखाई देता है। देसी भोजन शरीर के लिए अत्यंत लाभकारी है ज्यादा से ज्यादा नाश्ता मां खुद तैयार करें। टिफिन में देसी रोटियां और पकवान हो। इससे छत्तीसगढ़ की संस्कृति भी पुस्ट होगी। इस मौके पर नटखट नटखट नंदकिशोर माखन खा गयो माखन चोर… भजन की शानदार प्रस्तुति हुई। भजनों की तान को सुनकर श्रोतागण गन ताली बजाकर रसास्वादन करते रहे। इस मौके पर प्रमुख रूप से पंडित त्रिभुवन महाराज, पंडित कन्हैया महाराज, महिला कांग्रेस के जिला अध्यक्ष पद्मा दुबे, प्रीति पांडे, साहित्यकार श्रवण प्रखर सहित बड़ी संख्या में श्रोता गण उपस्थित थे।