माघी पुन्नी मेला के मुख्य मंच पर प्रथम दिन उषा बारले ने दी मनमोहक प्रस्तुति
राजिम। पंडवानी गायन के माध्यम से देश-विदेश में छत्तीसगढ़ की संस्कृति की छटा को बिखेरने वाली लोककला मंच भिलाई की पंडवानी गायिका उषा बारले किसी परिचय का मोहताज नहीं है। माघी पुन्नी मेला के प्रथम दिन मुख्यमंच पर अपनी मनमोहक प्रस्तुति से दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाट से पूरा महोत्सव स्थल गूंज उठा। मंच से प्रस्तुति देकर सीधे मीडिया सेंटर पहुंची बारले ने चर्चा के दौरान बताया कि कपालिक शैली में पंडवानी गायन में कौरव पांडव के मध्य हुए महाभारत कथा का वर्णन किया गया है। महाभारत में पांच पांडव धर्म की राह पर चलकर भाई-चारे के भाव का संदेश देते थे, लेकिन कौरवदल में सभी कुविचारों से परिपूर्ण थे। सत्य और असत्य के बीच की लड़ाई इतनी अधिक बढ़ी की वह महाभारत के भीषण संहार के रूप में सामने आया। आज के परिवेष में हर घर में चल रहे विवाद महाभारत का रूप लेते नजर आते है। पंडवानी के माध्यम से महाभारत के भंयकर परिणाम को बताते है जिससे आने वाले समय में हम इस महाभारत से बच सके। आगे उन्होंने बताया कि 1999 में दिल्ली जंतर-मंतर में विद्याचरण शुक्ल के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ राज्य की मांग के लिए धरणा दिए। जिसके लिए हमें 45 मिनट तक जेल के अंदर रखा गया। बाद में हमारी मांग को सही मानते हुए बहुत विचार मंथन के बाद हमें बाहर निकाला गया तब से एक क्रांतिकारी कलाकार के रूप में मुझे जाना जाता है। छत्तीसगढ़ के अलावा न्यूयार्क, लंदन, जापान में भी पंडवानी गायन कर चुकी है। गुरूघासीदास के जीवनगाथा को पंडवानी के रूप में गाने का श्रेय सबसे पहले उन्हें जाता है। 2006 में दिल्ली के गणतंत्र दिवस परेड में छत्तीसगढ़ से पंडवानी का प्रतिनिधित्व कर प्रथम स्थान प्राप्त किया। 2014 में गुरूघासीदास समाज चेतना पुरूस्कार से सम्मानित किया गया। कोरोनाकाल में 2 लाख रूपये चंदा इकट्ठा कर जरूरतमंद लोगों को हमारी मंच की तरफ से सहयोग किया गया। राजिम माघी पुन्नी मेला में प्रतिवर्ष हम अपना प्रस्तुति देते है। यहां कि व्यवस्था बहुत अच्छी है बस सरकार से यही अपेक्षा है कि मुझे पहचाने व पदम्श्री पुरस्कार देकर मेरी कला को प्रोत्साहित करें। आने वाले नये कलाकारों संदेश देते हुए कहा कि पहले गायन के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाना बहुत ही कठिन था आज मोबाईल होने से हर काम सहज हो गया है। यू-टयूब के माध्यम से प्रतिदिन अभ्यास करें और आगे बढ़े। हमारी संस्था द्वारा सेक्टर 1 भिलाई में निःशुल्क पंडवानी प्रशिक्षण दिया जाता है। असम में मिनीमाता जयंती पर छत्तीसगढ़ शासन की तरफ से जाकर मिनीमाता की जीवनी को गायन पंडवानी के रूप में बखान किया गया। भारत के हृदय स्थल पर से छत्तीसगढ़ अपने लोक कलाओं के माध्यम से अनेक विधाओं में ख्याति प्राप्त अर्जित की है। जीवन परिचय बताते हुए बताया कि इस पावन माटी में 2 मई 1968 को भिलाई में जन्म हुआ। माता श्रीमती धनमत बाई पिता स्व. खाम सिंह जांगड़े है विवाह अमरदास बारले के साथ बाल विवाह 1971 में हुआ। पंडवानी शिक्षा के बारे में बताते हुए कहा कि 7 वर्ष की उम्र में गुरू मेहत्तरदास बघेलजी से पंडवानी गायन की शिक्षा ली। उन्होंने अपनी प्रथम कार्यक्रम भिलाई खुर्शीपार में दिया गया है। फिर धीरे-धीरे भिलाई स्टील प्लांट के सामुदायिक विभाग के लोक महोत्सव से 1975 में भाग लिया जो आज तक जारी है। पदम् विभूषण डाॅ. तिजन बाई से प्रशिक्षण लिया। तपोभूमि गिरौदपुरी धाम में स्वर्ण पदक से 6 बार सम्मानित किया गया। राजिम आने से अपनेपन का एहसास होता है। मेरी अंतिम ईच्छा है कि मंच पर पंडवानी गायन करते हुए मेरे प्राण जाए। दर्शकों प्यार और स्नेह मुझे मिलता रहे।.