65 दिन में कैसे होगा नवीन मेला स्थल में स्थाई निर्माण
राजिम। प्रदेश के प्रसिद्ध राजिम माघी पुन्नी मेला 16 फरवरी से है। इसकी तैयारी नवीन मेला ग्राउंड में शुरू हो गई है लेकिन कछुआ चाल से भी धीमी तैयारी होने से लोगों में संशय की स्थिति बनी हुई है कि आखिरकार इतने कम दिनों में स्थाई निर्माण कैसे होंगे। लगभग पिछले 20 दिनों से लगातार पहले एक जेसीबी मशीन पश्चात दो जेसीबी मशीन से भूमि को समतल करने का काम चल रहा है यह काम और कितने दिन तक चलेगा यह बताने वाला कोई जिम्मेदार अधिकारी भी वहां मौजूद नहीं दिखे। प्रदेश सरकार स्थाई निर्माण के लिए योजना बना चुके हैं और उन्हें मूर्त रूप देने के लिए ही सारी तैयारियां की जा रही है इस बाबत गत 25 नवंबर को गरियाबंद जिला कलेक्टर निलेश क्षीरसागर, एसडीएम अविनाश भाई, तहसीलदार टोप्पो समेत अन्य अधिकारी कर्मचारी स्थल का निरीक्षण किए तथा जरूरी मार्गदर्शन भी किए। शनिवार को हमारे संवाददाता ने ग्राउंड रिपोर्ट के लिए मेला स्थल का निरीक्षण किया। चौबेबांधा पुल से लेकर नगर के शीतला मंदिर तक तटबंध बना हुआ है। इसके एक और नदी है तो दूसरी ओर पूर्व दिशा में मैदान है जहां पर मेला लगना है। तटबंध के पास 25 से 30 फीट गड्ढा लगातार एक से डेढ़ किलोमीटर तक है। मैदान को समतल किया जाता है तो इसे पाटने में ही लंबा समय लगेगा। एनीकट से आगे खाई जैसे गड्ढे इन्हें लेवलिंग करने से स्थल बड़ा दिखेगा तथा लुकिंग बढ़ जाएगी। वहीं तटबंध में कई जगह दरार दिखे। इस संबंध में प्रमुखता के साथ समाचार भी प्रकाशित हुई है लेकिन किसी जिम्मेदार ने ध्यान नहीं दिया है। चौबेबांधा के घोर्री मैदान से लेकर कबीर आश्रम तक आरक्षित 54 एकड़ भूमि का क्षेत्रफल वृहद है। उल्लेखनीय है कि मेले में सड़कों का जाल बिछा रहता है और देखते ही देखते इनकी दूरी 8 से 10 किलोमीटर हो जाती है। इसमें चार से पांच छोटी बड़ी सड़कें भी बननी है। पुल को जोड़ने वाली राजिम पहुंच मार्ग को चौड़ी तथा चिकनी व सुंदर बनाई जाएगी इसके लिए भी प्रशासन करोड़ों रुपया खर्चा करेगी। बता देना जरूरी है कि इसी स्थल पर लाखों रुपया की लागत से धर्मशाला बनकर तैयार है। आने जाने के रास्ता नहीं होने के कारण या फिर अन्य और कोई कारणों से उनका उद्घाटन नहीं हो पाया था लेकिन गत दिनों पहुंचे गरियाबंद कलेक्टर ने कहा कि इसी से संलग्न एक और धर्मशाला बनाया जाएगा और इनके स्वरूप को विस्तार दिया जाएगा। इससे आसपास वह बाहर से आने वाले पर्यटकों को सुविधा मिलेगी। शासन प्रशासन स्थाई निर्माण की बात तो कह रही हैं समय कम है और काम की गति धीमी है इससे लोग अंदाजा लगा रहे हैं कि आखिरकार इस बार भी मेला नवीन मेला ग्राउंड में लगेगा या फिर पुराने स्थल पर संशय बरकरार है। देखना है कितने कम दिनों में किस तरह से जिला प्रशासन तैयारियों को अमली जामा पहनाते हैं। चर्चा में है कि अभी तक जिले के प्रभारी एवं संस्कृति मंत्री का मेला स्थल निरीक्षण के लिए दौरा कार्यक्रम नहीं बना है।
कहना होगा कि राजिम मेला का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। पुराने जमाने से त्रिवेणी संगम की रेत पर मेला लगता हुआ आ रहा है। सन् 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद कांग्रेस शासन में इनके स्वरूप को विस्तार प्रदान किया गया था तथा इन्हें राजिम महोत्सव का नाम देकर राज्य के छोटे बड़े कलाकारों को एक सुनहरा मंच प्रदान किया। 2003 के चुनाव में सत्ता परिवर्तन हुई और भा ज पा के डॉ. रमन सिंह मुख्यमंत्री बने। उस समय तत्कालीन संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की अगुवाई में इनके महत्व को देश दुनिया में पहुंचाने के लिए सन् 2005 में अर्ध कुंभ पर्व की मान्यता दी गई पश्चात इन्हें 2006-7 से कुंभ पर्व बना दिया गया। प्रचार-प्रसार भी खूब हुई और लोग इसे ही कुंभ सरीखा मानकर पुण्य स्नान के लिए आने लगे। साधु संतों का जमावड़ा होने लगा। छत्तीसगढ़ की जनता राजिम में कुंभ मेला को देख रहे थे क्रम चलता रहा। कुंभ पर्व नाम पर टीका टिप्पणी होने के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी के कहेनुसार कल्प कुंभ पर्व से संबोधित करना शुरू कर दिया। इसमें ना सिर्फ प्रदेश के लोक कलाकारों को मौका मिलता था बल्कि देशभर के बड़े कलाकारों के अलावा बॉलीवुड के नामचीन गायक प्रस्तुति देने लगे। इससे देश दुनिया में राजिम कुंभ का नाम तेजी के साथ फैलता गया। समय बदला और 2018 के आम चुनाव में पुनः कांग्रेस पार्टी का शासन आया और इन्होंने कुंभ पर्व शब्द को हटाकर माघी पुन्नी मेला कर दिया। समय के साथ साथ इनका नाम बदलता गया है। नदी के रेत में मुरम की सड़क बनाने से संगम प्रदूषित हो रही थी जिनका विकल्प के रूप में तट में ही पूरी मेला लगाने की योजना बनाई। पूर्ववर्ती सरकार ने
इसकी तैयारी की। परंतु भूपेश बघेल की सरकार ने 54 एकड़ की जमीन नदी किनारे आरक्षित कर इनके स्थाई निर्माण को बल प्रदान किया है। इस बार लोग नवीन मेला मैदान में मेला का स्वरूप देखना चाह रहे हैं। तैयारियां धीमी होने से लोगों में संशय है।